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परिकरान्कुर में रखे, साभिप्राय कवि नाम.[काव्य का रचना शास्त्र: ४७] - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"


जहाँ पर क्रिया को विशेष रूप से प्रकाशित करने या महत्व देने के लिए साभिप्राय विशेष्य या नाम का कथन किया जाता है वहाँ परिकरान्कुर अलंकार होता है.

Kaavya ka RachnaShashtra by Sanjeev Verma 'Salil'
रचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम.ए., एल.एल.बी., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।

पाये जहाँ विशेष्य से, क्रिया विशेष महत्व.
परिकरान्कुर हो वहीं, समझें कविता-तत्त्व..

परिकरान्कुर में रखे, साभिप्राय कवि नाम.
क्रिया प्रकाशित हो सके, जैसे नाम अनाम..

उदाहरण:

१.
तब तक हर के प्रखर शरों ने त्रिपुरासुर के प्राण हरे.

यहाँ त्रिपुरासुर के प्राण हरने का प्रसंग है. अतः, शैव के लिए विशेष रूप से उस नाम 'हर' का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ हरण करनेवाला है.

२.
मेरे प्रखर शरों के आगे भाग चलोगे तुम रणछोड़!

यहाँ युद्ध के मैदान से भागने का प्रसंग है. भागने की क्रिया को प्रकाशित करने के लिए क्रिशन के अनेक नामों में से 'रणछोड़' का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ ही युद्ध को छोड़नेवाला है.

३.
रतन चला घर भा अँधियारा.

यहाँ घर में अँधेरा होने का प्रसंग है. अतः, रजा रतनसेन के लिए 'रतन' (रत्न) का प्रयोग अभिप्राय विशेष से किया गया है.

४.
सुनहु बिनय मम बिटप असोका.
सत्य नाम कर हर मम सोका..

यहाँ. सीताजी के दुःख (शोक) को दूर करने का प्रसंग है. अतः, अशोक वृक्ष के लिए 'अशोक' नाम का प्रयोह साभिप्राय है.

५.
सौ रंग है सिवराज बली, जिन नौरंग में रंग एक न राख्यो.

यहाँ रंग न रखने का प्रसंग है (औरंगजेब सफ़ेद वस्त्र पहनता था) अतः, उसके लिए नौरंग (नौरंगोंवाला ) नाम का प्रयोग साभिप्राय है.

६.
नृप निरास भये निरखत नगर उदास.
धनुष तोरि हरि सबकर हरयो हरास..

७.
बाल बेलि सूखी सुषद, इहि रूखे रुख घाम.
हेरि डहडही कीजिए, सरस सींचि घनस्याम..

समासोक्ति, परिकर तथा परिकरान्कुर में विशिष्ट शब्द प्रयोग का महत्व होता है. इनमें विशेषण या विशेष्य साभिप्राय एवं विशिष्ट अर्थगर्भित होते हैं.

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8 टिप्पणियाँ

  1. एसे अलंकार जिनके नाम भी नहीं सुने उनके बारे में जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. आचार्य जी पुन: धन्यवाद जानकारी पूर्ण आलेख के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  3. व्याकरण और अलंकार का अच्छा युगल है।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद |

    एक प्रयास -

    मेरा ह्रदय विलापता , व्यथित
    उसका हुंकारता, दम्भित |

    सही बना है ?


    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  5. आपसे हर बार नया ही सीखने को मिलता है। आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अवनीश जी !
    प्रयास के लिए धन्यवाद.

    मेरा ह्रदय विलापता , व्यथित
    उसका हुंकारता, दम्भित |

    एक सीमा तक ठीक किन्तु प्रसंग तथा उसके अनुकूल विशेषण के लिए अधिक अभ्यास चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  7. ३.
    रतन चला घर भा अँधियारा.

    यहाँ घर में अँधेरा होने का प्रसंग है. अतः, रजा रतनसेन के लिए 'रतन' (रत्न) का प्रयोग अभिप्राय विशेष से किया गया है.
    Alankaar ke kshitij
    se ek naya parichay paya . abhaar

    जवाब देंहटाएं

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