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हर शाम सूरज ढलने के बाद [कविता] - सुमित सिंह

हर शाम सूरज ढलने के बाद
मैं तुम्हारा इंतजार करता हूं...

अरब सागर की गीली हवा
अपने संग न जाने क्या-क्या लेकर आती हैं
अपनी छुअन में तुम्हारा सुकूनदेय एहसास भी
गीले-नमकीन दुपट्टे की तरह

और सितंबर के दिनों में मेरे ऊपर खूब बारिश होती है
मैं सारी शाम भींगता रहता हूं समंदर किनारे।

बिन बताए रात उतरती हैं मुम्बई में
ऊंची इमारतों से लेकर
झुग्गियों की सीलन भरी गलियों में
पर मैं उसे हर बार
तुम्हारी गीली खुशबू से पहचान लेता हूं।

एक बात बताऊं?
घर लौटने के बाद
हर रात मैं एक सपना देखता हूं
मेरे सिरहाने हड्डियों वाला
एक थका हुआ बूढ़ा आता है
वह बहुत कुछ कहना चाहता है
पर उसकी बुदबुदाहटों में
मैं केवल दो शब्द ही समझ पाता हूं
- ‘प्रेम..शांति’...‘प्रेम और शांति’

इसके बाद मैं और तुम
साबरमती नदी के किनारे
टहलने निकल पड़ते हैं
रात की गहरी खामोशी में
हवाओं की ठंडी सिसकियों के बीच
हम नदी की रेत पर चलते चले जाते हैं
मैं तुमसे पूछ्ता हूं ‘कहां जा रहे हैं हम?’
- ‘प्रेम और शांति के खोज में’
हमारे कदमों की आहट से डर कर
रात के पक्षी किनारे से उड़कर
नदी के पानी में जा बैठते हैं
हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर
चलते चले जाते हैं
बिना रुके बहुत दूर तक

फिर आसमान के एक सिरे पर
सिंदूरी रंग फैलता है
तुम्हारा हाथ मुझसे छूटने लगता है
अगली रात आने का वादा कर
तुम वापस लौट जाती हो
साबरमती के किनारे मैं ठिठका सा खड़ा
तुम्हें जाता हुआ देखता रहता हूं...

मेरे सपने टूट जाते हैं।

मुम्बई की तेज रफ्तार जिंदगी के बीच
मुझे बार-बार याद आता है
प्रेम और शांति की हमारी वह पागल खोज
साबरमती का वह ठंडा किनारा!!!

मुम्बई के समुद्र तट पर मुझे
मुझे हर शाम तुम्हारा इंतजार रहता है।
------------

सुमित सिंह, मुम्बई

जन्म: 16.12.1980, काठमांडू, (नेपाल)
संप्रति: स्वतंत्र पत्रकारिता, अनुवाद कार्य तथा पेंटिंग रचना
ब्लॉग: http://www.apnaapnaasman.blogspot.com/

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7 टिप्पणियाँ

  1. वाह ! एक नव रचना है | जो एक विशेष स्थान और वातावरण को ध्यान में रख रची गयी लगती है |
    सुन्दर भाव |
    बधाई |


    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. भावनाओं के ओतप्रोत बढ़िया गीत...बधाई सुमित जी

    जवाब देंहटाएं
  3. झुग्गियों की सीलन भरी गलियों में
    पर मैं उसे हर बार
    तुम्हारी गीली खुशबू से पहचान लेता हूं।
    मुंबई की भागदौड भरी जिंदगी में प्यार के लिए वक्त निकालना भी कितना मुश्किल है...ऐसे माहौल में इतनी प्यारी कविता को निभाना..वाह! बहुत सुंदर कविता..सुमीत जी बधाई!

    जवाब देंहटाएं

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