
2 अक्टूबर, 1974 को पंजाब के अबोहर मे जन्मी सीमा सचदेव पेशे से हिन्दी-अध्यापिका हैं। इनकी कई रचनाये जैसे- विभिन्न अंतर्जाल पत्रिकाओ मे प्रकाशित हैं। "मेरी आवाज़ भाग-१,२", "मानस की पीड़ा",,"सन्जीवनी", "आओ सुनाऊं एक कहानी", "नन्ही कलियाँ", "आओ गाएं" नामक रचना-संकलन ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं।
इक जंगल में था इक शेर
देखा उसने आम का पेड़
घनी थी आम वृक्ष की छाया
देख के शेर के मन में आया
क्यों न वह यहाँ रह जाए
अपना अच्छा समय बिताए
पास में था चूहे का बिल
आया देख के बाहर निकल
देखा उसने सोया शेर
नहीं लगाई जरा भी देर
चढ़ गया उसकी पीठ पर
लगा कूदने शेर के ऊपर
खुल गई इससे शेर की जाग
लग गई उसके बदन मे आग
छुप गया चूहा अब बिल में
जला शेर दिल ही दिल में
उसने बिल्ली को बुलाया
और चूहे का किस्सा सुनाया
जैसे भी चूहे को मारो
तब तक मेरे यहाँ पधारो
खाना तुमको मैं ही दूँगा
हर पल तेरी रक्षा करूँगा
बिल्ली ने मानी शेर की बात
रहती बिल के पास दिन-रात
अच्छे-अच्छे खाने खाती
और बाकी सबको सुनाती
मैं तो हूँ तुम सबसे सयानी
समझने लगी वो खुद को रानी
बैठा चूहा बिल के अन्दर
नहीं निकला कुछ दिन तक बाहर
भूख से वह हो गया बेहाल
पर बाहर था उसका काल
कितने दिन वो भूख को जरता
भूखा मरता क्या न करता
कुछ दिन बाद वो बाहर निकला
और बिल्ली को मिल गया मौका
चूहे को उसने मार गिराया
जाकर शेर को सब बतलाया
शेर का मसला हो गया हल
बदल गई आँखे उसी पल
बोला! जाओ तुम अपनी राह
नहीं रखो कोई मुझसे चाह
अब न तुमको मिलेगा खाना
मेरे पास कभी न आना
अब बिल्ली ने जाना राज
मतलब से मिलता है ताज़
मतलब से सब पास मे आएँ
बिन मतलब न कोई बुलाए
4 टिप्पणियाँ
हितोपदेश का काव्यानुवाद अत्यंत सराहनीय कार्य है। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशिक्षाप्रद।
जवाब देंहटाएंsundr rchna hai .pnchtnrt ka prtinidhitv krti hai bchchon ko bhi achchhi lgegi.bdhai
जवाब देंहटाएंdr.ved vyathit
faridabad
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.