
11 मई 1949 को कराची (पाकिस्तान) में जन्मीं देवी नागरानी हिन्दी साहित्य जगत में एक सुपरिचित नाम हैं। आप की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में "ग़म में भीगी खुशी" (सिंधी गज़ल संग्रह 2004), "उड़ जा पँछी" (सिंधी भजन संग्रह 2007) और "चराग़े-दिल" (हिंदी गज़ल संग्रह 2007) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कई कहानियाँ, गज़लें, गीत आदि राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आप वर्तमान में न्यू जर्सी (यू.एस.ए.) में एक शिक्षिका के तौर पर कार्यरत हैं।.....
बहे काजल न क्यों हरदम, वतन की याद आती है
समय बीता बहुत लंबा हमें परदेस में रहते
न उसको भूल पाए हम, वतन की याद आती है
तड़पते हैं, सिसकते हैं, जिगर के ज़ख़्म सीते हैं
ज़ियादा तो कभी कुछ कम, वतन की याद आती है
चढ़ा है इतना गहरा रंग कुछ उसकी मुहब्बत का
हुए गुलज़ार जैसे हम, वतन की याद आती है
यहाँ परदेस में भी फ़िक्र रहती है हमें उसकी
हुए हैं गम से हम बेदम, वतन की याद आती है
हमारा दिल तो होता है बहुत मिलने मिलाने का
रुलाते फ़ासले हमदम, वतन की याद आती है
वही है देश इक ‘देवी’ अहिंसा धर्म है जिसका
लुटाता प्यार की शबनम, वतन की याद आती है
14 टिप्पणियाँ
वही है देश इक ‘देवी’ अहिंसा धर्म है जिसका
जवाब देंहटाएंलुटाता प्यार की शबनम, वतन की याद आती है
बहुत खूब देवी जी। हर एक पंक्ति अपने आप में कीमती है। लीजिए मैं भी कोशिश करूँ-
बसे परदेश में फिर भी दिलों में शेष है जज्बा
यही भारत का है दम खम वतन की याद आती है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
हमारा दिल तो होता है बहुत मिलने मिलाने का
जवाब देंहटाएंरुलाते फ़ासले हमदम, वतन की याद आती है
बहुत प्रभावी और संवेदनशील ग़ज़ल है।
Nice Gazal.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
देवी नागरानी जी गज़ल विधा में जाना माना नाम हैं। परदेस की व्यथा गज़ल बखूबी कहती है।
जवाब देंहटाएंतड़पते हैं, सिसकते हैं, जिगर के ज़ख़्म सीते हैं
जवाब देंहटाएंज़ियादा तो कभी कुछ कम, वतन की याद आती है
अहसास से भरी ग़ज़ल है। आँख भर आती है।
Wahwa...Behtreen GAZAL
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है |
जवाब देंहटाएंदेश प्रेम से ओत - प्रोत |
बधाई |
अवनीश तिवारी
मुम्बई
बहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंहमारा दिल तो होता है बहुत मिलने मिलाने का
जवाब देंहटाएंरुलाते फ़ासले हमदम, वतन की याद आती है
दीदी की ग़ज़ल पर क्या कहूँ...बहुत दिल से लिखती हैं...और जब सुनातीं है तो बस फिर पूछिए मत...सुरों की गंगा बहती है...इश्वर उन्हें हमेशा खुश रखे....
नीरज
dhnya hain aap
जवाब देंहटाएंaap ke jazbaat
aap ki lekhni
aur aapka ishq-e-vatan
___vandan is vatan ka
__vandan aap jaise hamvatan ka !!
देवी जी,
जवाब देंहटाएंमिट्टी की सोंधी सोंधी सुगन्ध सी अपने देश की याद हर पल तन और मन में बसती है और फ़ासले रुलाते हैं। इस अह्सास को संवेदनशील शब्दों में पिरो कर आपने मन और आँख दोनों ही भिगो दी। धन्यवाद इतनी सुन्दर गज़ल के लिये तथा साहित्यशिल्पी का आभार।
शशि पाधा
अत्यंत संवेदनशील ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंवतन की याद आती है...
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं को छुआ है आपने. दर्द बहुत है इस ग़ज़ल में...
- सुलभ
वतन से दूर, रहकर भी मन की इस साहित्य शिल्प के माध्यम से कुछ कसक कम हो जाती है. आप सभी का प्रोत्साहन मेरी लिए बहुत ही अनमोल मार्गदर्शक है.
जवाब देंहटाएंकभी रोता है दिल मेरा, कभी आंखें हैं होती नम
क्या मिट पायेगी ये दूरी, क्या होंगे फासले ये कम
आप सभी का हार्दिक आभार और साहित्य शिल्प के इस मंच को भी मेरा अभिनन्दन
देवी नागरानी
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.