
{सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक रचना से प्रेरित}
तुमने मुझे चूमा
और मैं फूल बन गयी
तुमने मुझे चूमा
और मै फल बन गयी
तुमने मुझे चूमा
और मैं वृक्ष बन गयी
फिर मेरी छाँह में बैठ रोम-रोम जुड़ाते रहे।

सुशील कुमार का जन्म 13 सितम्बर, 1964, को पटना सिटी में हुआ, किंतु पिछले तेईस वर्षों से आपका दुमका (झारखण्ड) में निवास है।
आपनें बी०ए०, बी०एड० (पटना विश्वविद्यालय) से करने के पश्चात पहले प्राइवेट ट्यूशन, फिर बैंक की नौकरी की| 1996 में आप लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर राज्य शिक्षा सेवा में आ गये तथा वर्तमान में संप्रति +२ जिला स्कूल चाईबासा में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
आपकी अनेक कविताएँ-आलेख इत्यादि कई प्रमुख पत्रिकाओं, स्तरीय वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
तुमने छूआ मुझे
और मैं नदी बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सागर बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सितार की तरह
बजने लगी, फिर मेरे तट पर
देह-राग की धूप में निर्वसन हो बरसों नहाते रहे।
तुमने देखा मुझे
और कहा-
तुम मेरे आकाश की नीहारिका हो
तुमने सुना मुझे
और कहा-
तुम सरोद की सुरीली तान हो
तुमने मेरे जल में स्नान किया
और कहा-
तुम जलते जंगल में जलभरा मेघ हो
तुमने सूँघा मुझे
और कहा-
तुम रजनीगंधा का फूल हो
फिर मुझे में विलीन हो अपनी सुध-बुध खो बैठे।
तुमने जो कहा
जैसे कहा
मैं बनती गयी
सहती गयी
स्वीकारती गयी अक्षर-अक्षर
और तुम्हारे प्यार में पगली बन
यह भूल गयी कि
मैं तो भोग्यामात्र हूँ तुम्हारी, अब
तुमने मुझे एक नंगी तस्वीर बना दिया है।
गौर से देखो मुझे...
समुद्र में उठे हुए तुफान के बाद
उसके तट पर पसरा हुआ मलवा हूँ
दहेज की आग में
जली हुई मिट्टी हूँ
देखो मेरी देह पर
वक्त की कितनी खराँचें हैं
युगों से ठगी गयी
सतायी एक जि़न्दा भस्मीभूत शव हूँ
अब और कोई नाम ना देना मुझे
मैं संज्ञाहीन
सच हूँ तुम्हारी।
9 टिप्पणियाँ
अच्छी पेंटिंग पर अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंअब और कोई नाम ना देना मुझे
जवाब देंहटाएंमैं संज्ञाहीन
सच हूँ तुम्हारी।
एक विस्फोटक अंत किया है रचना का |
चित्र और रचना दोनों बढ़ायी के पात्र हैं |
अवनीश तिवारी
बेहतर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति है।बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचित्र पर कविता की रचना अच्छी है.
जवाब देंहटाएंमुझे दो जगह थोडा संतुलन दिखा...
1. "तुमने छूआ मुझे
और मैं नदी बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सागर बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सितार की तरह
बजने लगी, फिर मेरे तट पर
देह-राग की धूप में निर्वसन हो बरसों नहाते रहे।"
2.
तुमने मेरे जल में स्नान किया
और कहा-
तुम जलते जंगल में जलभरा मेघ(बादल) हो
?(जलते जंगल के ऊपर / जलते जंगल के लिए)
सशक्त्त एवं भावपूर्ण रचना के लिये सुशील जी को बधाई तथा साहित्यशिल्पी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.