
दीपक गुप्ता [का जन्म 15 मार्च 1972 को दिल्ली में हुआ। आप दिल्ली विश्वविद्यालय से कला में स्नातक हैं। आपकी प्रकाशित कृति हैं:- सीपियों में बंद मोती (कविता संग्रह) – 1995; आप की रचनायें देश के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित व टेलीविजन कार्यक्रमों में प्रसारित होती रही हैं।
इक ज़रा सी बात पर
आ गए औकात पर
आप भी हंसने लगे
अब मेरे जज़्बात पर
हँसते - हँसते रो पड़ा
वो मेरे हालात पर
फिर ज़मीं प्यासी हुई
फिर नज़र बरसात पर
ज़िंदगानी वार दो
प्यार के लम्हात पर
5 टिप्पणियाँ
लाजवाब करते हुए शेर है गीपक जी
जवाब देंहटाएंगजल के व्याकरण का पता नहीं मुझे , लेकिन शेर तो मजेदार हैं , खास कर कम शब्दों वाले हैं |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
WAH WAH WAH WAH
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
शब्द के छोटी छोटी सीपियों में इतने अनमोल मोती आपने पन्नो पर बिखेर दिए हैं कि हर शेर को पढ़ मन वाह कर उठता है...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ग़ज़ल..सिम्पली ग्रेट..
सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.