श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' का जन्म 10 अक्तूबर 1959 को हुआ। आप आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे।
आपकी रचनाओं का विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में प्रकाशन होता रहा है। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार आपने सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया है।
वर्तमान में आप वायुसेना मे कार्यरत हैं तथा चंडीगढ में अवस्थित हैं।
वक्त का मरहम हटाया जायेगा
लहू से लोहित हुयी सरयू अभी मैली पड़ी
आज क्या फिर से वही लोहू बहाया जायेगा
तारीख़ के पन्नों से निकली धुंध फिर सबओर है
राम को घर से हटा बाब़र बिठाया जायेगा
उनको अब तो छोड़ दो दो जून रोटी के लिये
टूटी ठेलों को कहीं फिर से जलाया जायेगा
पड़ोसी वाशिद की आंखें आज फिर ये पूंछतीं
भूखे बच्चों को तेरे घर पे सुलाया जायेगा
भरोसा अब कांच की उन बन्द खिड़की के सहन
’कान्त’ पत्थर वोट का संसद से चलाया जायेगा
तुम हमारे जख्म फिर से मत कुरेदो
वक्त का मरहम हटाया जायेगा
3 टिप्पणियाँ
ram ko fir se hta babr bithaya jayega aap ke shbd vrtman schchai ko vykt kr rhe hai swarth ke liye neta kuchh bhi kr skte hain kash inhe ye bat smjh aa jati to vishv men manvta jivit ho jati
जवाब देंहटाएंdr ved vyathit
तुम हमारे जख्म फिर से मत कुरेदो
जवाब देंहटाएंवक्त का मरहम हटाया जायेगा
अच्छा कहा है
श्रीकान्त जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर विचारों को आपने अपनी इस रचना में पिरोया है.. आज का सत्य यही है. धर्म जैसी पूजनीज वस्तु को भी अपने राजनैतिक सवार्थों के लिये प्रयोग किया जा रहा है.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.