
सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग आज की गज़ल का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
अफ़साने में आगे क्या है?
घर में हाल बजुर्गों का अब
पीतल के वरतन जैसा है
कोहरे में लिपटी है बस्ती
सूरज भी जुगनू लगता है
जन्मों-जन्मों से पागल दिल
किस बिछुड़े को ढूँढ रहा है?
जो मांगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुख मांगा है
रोके से ये कब रुकता है
वक़्त का पहिया घूम रहा है
आज "ख़याल" आया फिर उसका
मन माज़ी में डूब गया है
हमने साल नया अब घर की
दीवारों पर टांग दिया है
4 टिप्पणियाँ
आज "ख़याल" आया फिर उसका
जवाब देंहटाएंमन माज़ी में डूब गया है
हमने साल नया अब घर की
दीवारों पर टांग दिया है
शुभकामनायें नव वर्ष की।
Nice GaZal. Happy New Year.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
नया साल आपके लिए और पूरे संसार के लिए शाँति लेके आए!
जवाब देंहटाएंयही दुआ है।
जन्मों-जन्मों से पागल दिल
जवाब देंहटाएंकिस बिछुड़े को ढूँढ रहा है?
जो मांगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुख मांगा है
बधाई खूबसूरत पंक्तियों के लिये। नया साल आपके लिये मंगलमय हो।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.