
9 अप्रैल, 1956 को जन्मे डॉ. वेद 'व्यथित' (डॉ. वेदप्रकाश शर्मा) हिन्दी में एम.ए., पी.एच.डी. हैं और वर्तमान में फरीदाबाद में अवस्थित हैं। आप अनेक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं जिनमें हिन्दी-जापानी कवि सम्मेलन भी शामिल है। कई पुस्तकें प्रकाशित करा चुके डॉ. वेद 'व्यथित' अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
ये तो एक उदाहरण ही है कहाँ जबां खुल पातीहै
यदि जबां ही खुल जाये तो खूब देख लो क्या होगा
राजनीति के इन चहरों को शर्म यहां कब आती है
कानूनों के दाव पेंच में जनता ही पिस जाती है
जिस पर जितनी बड़ी सिफारिश उतनी ही चल जाती है
दाव यदि लग जाये तो फिर बाल नही बांका होगा
ये बेचारी भूखी नंगी जनता ही पिस जाती है।
राजनीति के चेहरे कितने हैं वीभत्स घने होते
क्या कर सकते हो उन का वे सब कुछ से उपर होते
कुछ भी कर लो फर्क नही है असर नही पड़ता इन पर
चिकने घड़े तो हैं ही क्या हैं ये उन से ज्यादा होते?
7 टिप्पणियाँ
आज की सच्चाई को उकेरा है डॉ साहब ने .. सचमुच समाज में कन्याओं की स्थिति अच्छी नहीं !!
जवाब देंहटाएंकविता रुचिका मामले को केन्द्र में रख कर लिखी गयी लगती है। प्रभावी सामयिक कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंikkisvin sadi ka bharat aur yah samajik darshan bahut badhiya kavita samajikata par prhaar karati ek bhavpurn kavita
जवाब देंहटाएंसामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों पर प्रश्न चिन्ह् लगाती हुई एक सश्क्त रचना । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
pathkon ne mejhe sneh diya hridya se abhar vykt krta hoon swikar kr len
जवाब देंहटाएंdr. ved vyathit
dr.vedvyathit@gmail.com
सही कहा आपने आज कथित राजनेताओं का ही वरद ह्स्त है हमारे कथित रक्षकों के सिर पर,तभी तो वे भक्षक बने हैं..ऊंचे ओह्दे पर बैठे ये शातिर घर की बेटियों पर ही आंख गढाये बैठे हैं। राठौड जैसे लोगों को छोड देना लोकतंत्र की तौहीन होगी। ऐसे लोगों को ऐसी कठोर से कठोर सजा दी जानी चाहिए जो दूसरे लोगों के लिए सबक बने। डा. वेद जी बहुत-बहुत बधाई ऐसी प्रहारात्मक रचना के! लिए
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.