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धूप से बरसा था यौवन [कविता] - प्रवीण शुक्ला

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धूप से बरसा था यौवन
खिल उठा धरती का मन
साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-
१५ जुलाई १९८४ को फर्रुखाबाद में जन्मे प्रवीण कुमार शुक्ल रसायन विज्ञानं में स्नातक हैं और फिलहाल बवाना में नोकिया सेल्लुलर में बतौर ऍम.आई.एस. कार्यरत हैं।

कवितायें लिखने का शौक बचपन से है। कुछ ऐसा देख कर या सुन कर या महसूस कर जिससे हृदय की भावनाएं उद्वेलित होने लगें तो उन्हें शब्द देने का प्रयास करते रहते हैं।

घास की नोकों से हंसती
चुलबुली झोको से हंसती
प्यार ले ले के बरसती
प्यार दे दे के बरसती
वो चंचली बाला

हर अंग था उसका पुलकित
हर ढंग था उसका हर्षित
यौवन के दहलीज पे
रखती कदम वो चल रही थी
हर मोड़ पर गिरती फिर
गिर कर सभल रही थी

सौन्दर्य उसका गिर रहा था
वस्त्र की सिलवटो से
उठ रही थी मंद गंधे
जुल्फ की लटो से
विचारशील सी वो
मुग्ध चल रही थी
हर घडी घमंड से
उछल रही थी

साँस उसकी तेज थी
और हौसले बढे हुए
कर रहे थे स्वागत
लोग सब खड़े हुए
वो मुस्करा रही थी
गा रही थी
गीत ही गाये जा रही थी

कुछ चमक थी कुछ दमक थी
पहन रखा था जी उसने वसन
धूप से वर्षा था यौवन
खिल उठा धरती का मन

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12 टिप्पणियाँ

  1. श्रंगार और प्रकृति एक साथ। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी कविता।

    अनुज कुमार सिन्हा

    भागलपुर

    जवाब देंहटाएं
  3. वर्तनी की अशुद्धियाँ हैं। कृपया सुधार कर प्रस्तुत करें।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकृति और

    तनकृति का

    मनभावन

    चित्रण।

    जवाब देंहटाएं
  5. सही समय पर सही चीज़ ही याद आती है

    सुन्दर कविता

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर कविता है...विशेष कर ए पंक्तियाँ..

    कुछ चमक थी कुछ दमक थी
    पहन रखा था जी उसने वसन
    धूप से वर्षा था यौवन
    खिल उठा धरती का मन

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रवीण सब से पहले तो तुम्हें जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई और ढेरों आशीर्वाद कविता मे प्रकृति और शिंगार का संयोजन बहुत सुन्दरता से किया है बहुत बडिया लिखते हो बहुत आगे जाओगे आसमान छूने का जज़्वा दिल मे ले कर चलो भगवान तुम पर बहुत कृपालु हैं शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं

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