चाहे कोई साथ निभाए
आए कोई या मत आए।
दीप जलाकर बैठे कोई,
या फिर कोई उसे बुझाए।
किसकी राह निहारे सूरज,
वह हर पल चलता रहता है
जीवन तो चलता रहता है।
रचनाकार परिचय:-
गौरव शुक्ला कुछ समय पूर्व तक कवि और पाठक दोनों ही के रूप में अंतर्जाल पर बहुत सक्रिय रहे हैं।
अपनी सुंदर और भावपूर्ण कविताओं, गीतों और गज़लों के लिये पहचाने जाने वाले गौरव को अपने कुछ व्यक्तिगत कारणों से अंतर्जाल से दूर रहना पड़ा। साहित्य शिल्पी के माध्यम से एक बार फिर आपकी रचनायें अंतर्जाल पर आ रही हैं।
आँख लगे तो नींद भी आए,
नींद लगे तो स्वप्न सताए।
एक परी आए धीरे से,
हाथ पकड़ ले और उठाये।
भोर हुए तक साथ हमारे,
दीपक भी जलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
एक पखेरू एक ठिकाना,
और वहीं तक आना-जाना।
शीतल-शीतल छांव घनेरी,
सौंप दिया है आबो-दाना।
भीतर जैसे पंख पसारे,
पंछी है पलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
धड़कन थोड़ी साँस जरा सी
थोड़ी खुशियाँ और उदासी,
अँखियाँ फिर भी प्यासी-प्यासी।
बेदर्दी है समय निगोड़ा
यह सबको छलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
10 टिप्पणियाँ
चाहे कोई साथ निभाए
जवाब देंहटाएंआए कोई या मत आए।
दीप जलाकर बैठे कोई,
या फिर कोई उसे बुझाए।
किसकी राह निहारे सूरज,
वह हर पल चलता रहता है
जीवन तो चलता रहता है।
-- बहुत खूब
अवनीश तिवारी
sach kaha hai....जीवन तो चलता रहता है.....Lajawaab abhivyakti
जवाब देंहटाएंधड़कन थोड़ी साँस जरा सी
जवाब देंहटाएंथोड़ी खुशियाँ और उदासी,
अँखियाँ फिर भी प्यासी-प्यासी।
बेदर्दी है समय निगोड़ा
यह सबको छलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
बहुत खूब गौरव जी, बेमिसाल रचना।
Nice Poem. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
sunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंsur me saje to kya hi baat ho
rachana
जीवन दर्शन का पुट लिए मधुर गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और मर्म स्पर्शी विचारों से ओतप्रोत है यह रचना... गौरव जी बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढी...कैसे हैं आप ? कोई फ़ोन नंबर जिस पर आप से सम्पर्क हो सके.. जो नंबर मेरे पास है वह लगता नहीं है
जवाब देंहटाएंएक पखेरू एक ठिकाना,
जवाब देंहटाएंऔर वहीं तक आना-जाना।
शीतल-शीतल छांव घनेरी,
सौंप दिया है आबो-दाना।
भीतर जैसे पंख पसारे,
पंछी है पलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
गौरव शुक्ला जी को
भावपूर्ण और इतनी सुंदर कविता के लिए बधाई!
सुधीर सक्सेना 'सुधि' जयपुर
एक पखेरू एक ठिकाना,
जवाब देंहटाएंऔर वहीं तक आना-जाना।
शीतल-शीतल छांव घनेरी,
सौंप दिया है आबो-दाना।
भीतर जैसे पंख पसारे,
पंछी है पलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
....Bahut sundar bhavabhivyakti..badhai !!
एक पखेरू एक ठिकाना,
जवाब देंहटाएंऔर वहीं तक आना-जाना।
शीतल-शीतल छांव घनेरी,
सौंप दिया है आबो-दाना।
भीतर जैसे पंख पसारे,
पंछी है पलता रहता है।
जीवन तो चलता रहता है।
भावपुर्ण अच्छी कविता...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.