
ये रातअंधेरी भी
रोशन हो जायेगी
9 अप्रैल, 1956 को जन्मे डॉ. वेद 'व्यथित' (डॉ. वेदप्रकाश शर्मा) हिन्दी में एम.ए., पी.एच.डी. हैं और वर्तमान में फरीदाबाद में अवस्थित हैं। आप अनेक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं जिनमें हिन्दी-जापानी कवि सम्मेलन भी शामिल है। कई पुस्तकें प्रकाशित करा चुके डॉ. वेद 'व्यथित' अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
दीवाली आयेगी
खुशियोंके उजालों से
मनको भर जायेगी
मन में दीवाली है
दिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है
दिल ईंधन बनता है
तिल तिल जलने पर वो
दीपक सा जलता है
मन दीप सजाया है
दीवालीआई है
खुशियों का उजाला है
दीपों का उत्सव है
तुम्हें खुशियां खूब मिलें
मेरा ऐसा मन है
मन दीपक हो जाये
अंधियारे दूर रहें
उजियारा हो जाये
7 टिप्पणियाँ
मन दीपक हो जाये
जवाब देंहटाएंअंधियारे दूर रहें
उजियारा हो जाये
छोटी छोटी सुन्दर त्रिपदियाँ हैं।
सरल सुन्दर कविता। दीपावली की शुभकामना।
जवाब देंहटाएंमन में दीवाली है
जवाब देंहटाएंदिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है
प्रभावी पंक्तियाँ हैं। दीपावली की शुभकामना।
मोहक त्रिपदिया हैं पर्व को सही अर्थों में परिभाषित करती हैं।
जवाब देंहटाएंमन में दीवाली है
जवाब देंहटाएंदिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है
दिल ईंधन बनता है
तिल तिल जलने पर वो
दीपक सा जलता है
मन दीपक हो जाये
अंधियारे दूर रहें
उजियारा हो जाये
प्रभावित करती हैं रचनायें
सुगठित व प्रभावी त्रिपदियाँ, दीपावली को चरितार्थ करती हुई, मंगलकामनायें।
जवाब देंहटाएंत्रिपदियों का गुलदस्ता है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.