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मौसम के मस्तक पर [कविता] - दीपक गुप्ता



रचनाकार परिचय:-


दीपक गुप्ता [का जन्म 15 मार्च 1972 को दिल्ली में हुआ। आप दिल्ली विश्वविद्यालय से कला में स्नातक हैं। आपकी प्रकाशित कृति हैं:- सीपियों में बंद मोती (कविता संग्रह) – 1995; आप की रचनायें देश के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित व टेलीविजन कार्यक्रमों में प्रसारित होती रही हैं।
मौसम के मस्तक पर मैंने
नाम तुम्हारे लिख दी पाती
और प्रतीक्षारत उत्तर में
बादल का मन झांक रहा हूं

अक्सर मुझ्सरे बतियाता है
मस्त हवाओं का हरकारा
आते जाते बतला जाता
क्या है प्रियतम हाल तुम्हारा

झंझाओं को झेल रही है
नित दीपक की जलती बाती
कितना जीवन शेष अभी है
मन ही मन मैं आंक रहा हूं

तन की तन से दूरी है पर
मन का है मन से चिर बंधन
मेरी सांसों मे सुरभित है
तेरी सांसों का ही चंदन

अब तो सावन की रितु भी
मुझको बिलकुल नहीं सुहाती
नीर लिये नयनों के नभ में
कल्पित सपने टांक रहा हूं

मौसम के मस्तक पर मैंने
नाम तुम्हारे लिख दी पाती
और प्रतीक्षारत उत्तर में
बादल का मन झांक रहा हूं

एक टिप्पणी भेजें

11 टिप्पणियाँ

  1. एक अच्छी कोशिश .. हिंदी विरह गीत कम ही देखने को मिलते हैं आज कल ..
    शुरुआत बहुत सुघड़ और समर्पण से युक्त है |
    "मौसम के मस्तक पर मैंने नाम तुम्हारे लिख दी पाती
    और प्रतीक्षारत उत्तर में बादल का मन झांक रहा हूं"
    और अंत में भी वेदना की अभिव्यक्ति बड़ी ही कलात्मक और स्पर्श करने वाली है ,,
    "नीर लिये नयनों के नभ में कल्पित सपने टांक रहा हूं"|
    पता नहीं क्यूँ पर अन्तरो के भावः इन पंक्तियों से मेल नहीं खा रहे ..(मेरे ख्याल में )
    उदाहरण :
    तन की तन से दूरी है पर
    मन का है मन से चिर बंधन
    मेरी सांसों मे सुरभित है
    तेरी सांसों का ही चंदन
    यहाँ कवि आशावादी नज़र आता है और दैहिक नैकट्य पर आत्मिक नैकट्य को बेहतर मानता है .. जो की हल्का सा सूफी झुकाव का है |
    अगली ही पंक्ति
    "अब तो सावन की रितु भी मुझको बिलकुल नहीं सुहाती"
    कुछ अलग सा भाव ले कर उठती है जो मुझे असमंजस में डाल गयी .....
    दीपक भाई से उन के विचार जानना चाहूँगा इस पर..
    बहर हाल .. इस गीत के लिए बधाई ..

    जवाब देंहटाएं
  2. मौसम के मस्तक पर मैंने
    नाम तुम्हारे लिख दी पाती
    और प्रतीक्षारत उत्तर में
    बादल का मन झांक रहा हूं

    बहुत खूब दीपक जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. दीपक जी का यह गीत बहुत अच्छा लगा। बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  4. मौसम के मस्तक पर मैंने
    नाम तुम्हारे लिख दी पाती
    और प्रतीक्षारत उत्तर में
    बादल का मन झांक रहा हूं

    -बेहतरीन रचना!

    जवाब देंहटाएं
  5. झंझाओं को झेल रही है
    नित दीपक की जलती बाती
    कितना जीवन शेष अभी है
    मन ही मन मैं आंक रहा हूं


    अति सुंदर.....

    दीपक जी !
    आभार........

    जवाब देंहटाएं
  6. मौसम के मस्तक पर मैंने
    नाम तुम्हारे लिख दी पाती
    और प्रतीक्षारत उत्तर में
    बादल का मन झांक रहा हूं
    Itna sunder geet bahut bhaav purn man ki sari baaten kah di

    Aapko padhna bahut achha laga

    जवाब देंहटाएं
  7. अब तो सावन की रितु भी
    मुझको बिलकुल नहीं सुहाती
    नीर लिये नयनों के नभ में
    कल्पित सपने टांक रहा हूं....

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  8. mausam ke
    mastak par jab
    likhdee jaati paati

    patjhadi
    rut bhi aaye toh
    use utaar nahin paati

    saans ka chandan
    samooche nandan van par bhaari hai
    kyonki priye ki
    deh piya ko pranon se bhi pyari hai

    _______badhaai deepakji
    bahut bahut badhaai !

    GEET AAPKA DIL ME UTAR GAYA
    AAJ MAN AANAND SE BHAR GAYA

    जवाब देंहटाएं
  9. मौसम के मस्तक पर मैंने
    नाम तुम्हारे लिख दी पाती
    और प्रतीक्षारत उत्तर में
    बादल का मन झांक रहा हूं....Sumadhur shabd..bade sundar bhav...!!

    जवाब देंहटाएं
  10. ATI UTTAM SHABDAVALI AND RHYMATIC METHOD.

    RAMESH SACHDEVA
    HPS SR. SEC. SCHOOL
    SHERGARH, MANDI DABWALI

    जवाब देंहटाएं

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