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आज का आसमान [कविता] - मुकेश पोपली

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रचनाकार परिचय:-


11 मार्च 1959 को (बीकानेर, राजस्‍थान) में जन्मे मुकेश पोपली ने एम.कॉम., एम.ए. (हिंदी) और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्‍नातकोत्‍तर किया है और वर्तमान में भारतीय स्‍टेट बैंक, दिल्‍ली में राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्यरत है|

अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित मुकेश जी की रचनायें कई प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| आपका एक कहानी संग्रह "कहीं ज़रा सा..." भी प्रकाशित है। आकाशवाणी, बीकानेर से भी आपकी कई रचनाओं का प्राय: प्रसारण होता रहा है।

आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं और अपना एक ब्लाग "स्वरांगन" चलाते हैं।

धूँ-धूँ जलता शहर देख
रो रहा है आज आसमान
भट्टी की तरह
सुलग रही जमीन है
काला पड़ गया आज आसमान
यही आसमान
पहले कभी बरसात लाया था
हर आँगन
हर गली को
बरखा की
मीठी खुशबू से महकाया था
नहीं थी ग़म की परछाईं
चारों तरफ खुशियों का ही साया था
पर हमने दिया
आसमान को घिनौना, विकृत कालापन
हँसते-खेलते परिवारों को
उजाड़ कर
खेतों-खलिहानों में
पत्थर लगाकर
पेड़ों को काट कर
अब हम फिर बेचैन हैं
वर्षा के लिए
और आसमान की तरफ
आँख लगाये बैठे हैं
मगर इस बार वो सँभल गया है
पृथ्वी पर हो रहे
तांडव-नृत्यों को पहचान गया है
नहीं दूँगा
पानी की एक बूँद भी
इस बात पर वो अडिग है
और न जाने
बादलों को कहां ले गया है ।

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11 टिप्पणियाँ

  1. manav ke dushkarmon par
    ambar
    aansoo bahata hai

    he maanav !
    tu kudarat ko itna kyon satata hai ?

    yahi prashn aaj man me uthta hai aapki
    is umda kavita ko baanch kar......

    uttam kaavya k liye badhaai !

    जवाब देंहटाएं
  2. मगर इस बार वो सँभल गया है
    पृथ्वी पर हो रहे
    तांडव-नृत्यों को पहचान गया है
    नहीं दूँगा
    पानी की एक बूँद भी
    इस बात पर वो अडिग है
    और न जाने
    बादलों को कहां ले गया है ।
    _________________________
    Sapat shabdon men kahi sidhi bat..Kavi ke bhav pathak se ekakar ho rahe hain.

    जवाब देंहटाएं
  3. मुकेश जी की रचना 'आज का आसमान' एक सुन्दर कविता है.

    पर हमने दिया
    आसमान को घिनौना, विकृत कालापन
    हँसते-खेलते परिवारों को
    उजाड़ कर
    खेतों-खलिहानों में
    पत्थर लगाकर
    पेड़ों को काट कर
    अब हम फिर बेचैन हैं
    वर्षा के लिए

    बहुत सजीव चित्रण है. बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. मगर इस बार वो सँभल गया है
    पृथ्वी पर हो रहे
    तांडव-नृत्यों को पहचान गया है
    नहीं दूँगा
    पानी की एक बूँद भी
    इस बात पर वो अडिग है
    और न जाने
    बादलों को कहां ले गया है ।

    प्रभावी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  5. मगर इस बार वो सँभल गया है
    पृथ्वी पर हो रहे
    तांडव-नृत्यों को पहचान गया है
    नहीं दूँगा
    पानी की एक बूँद भी
    इस बात पर वो अडिग है
    और न जाने
    बादलों को कहां ले गया है ।

    Sajeev chitran

    जवाब देंहटाएं
  6. मुकेश जी ! बधाई
    पर असली बधाई तब जब बादलों
    को ढूढ पायें क्योंकि खोने का पता आपको
    ही लगा है, हमें तो इस बात से सदमा लगा है

    जवाब देंहटाएं
  7. सच कहा आपने...जैसा बोया है हमने...वैसा तो काटना ही पड़ेगा

    बढिया रचना

    जवाब देंहटाएं
  8. मगर इस बार वो सँभल गया है
    पृथ्वी पर हो रहे
    तांडव-नृत्यों को पहचान गया है
    नहीं दूँगा
    पानी की एक बूँद भी
    इस बात पर वो अडिग है
    बहुत ही सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है आभार्

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर कविता बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति ... lajawaab

    जवाब देंहटाएं
  10. साहित्‍य प्रेमी अक्‍सर प्रकृति से प्रेम करने वाले भी होते हैं, राजस्‍थान का निवासी होने के कारण मैं गर्मी से नहीं डरता था, लेकिन इस वर्ष दिल्‍ली की भयंकर गर्मी ने मुझे झकझोर कर रख दिया । अभी तक मैं दिल्‍लीवासियों को बताता था कि राजस्‍थान में इससे भी भयंकर गर्मी पड़ती है, मगर इस बार गर्मी मैं स्‍वयं भी सहन नहीं कर पाया । बहुत पहले लिखी गई यह कविता आप सबको यह कविता पसंद आई, यह जानकर मुझे प्रसन्‍नता हुई । मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सब का हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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