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चंगेर दर चंगेर [कविता] - सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’

एक चंगेर बनाई थी
जिस दिन तू पैदा हुई
हर बार कहीं से भी
कोई महकता फूल मिलता
मोती मिलता
अनलभ श्रंगार मिलता
मैं उठाती
और उसे चंगेर में रख देती
और ऊपर से फिर उसे
लाल सालू से ढक कर
अपने छोटे से कमरे की
बडी सी अलमारी के
छोटे से खाने में
रख देती...।

छिपाने के हेतु
इधर उधर कि कागजी लतरें
अधबुने स्वेटर के
गोले सलाईयाँ
रख देती
ताकि मेरे उस खजाने को
कोई न देख सके
कोई नजर न लगा सके।

सालों साल बीतते गए
चंगेरों दर चंगेर चढती गई
अब हर चंगेर का
अपना वजूद बन गया।

कोई काढनों की
कोई सुई सलाई
कोई चूडियों की
महावर की
नए नए निकलने वाले नगीनों की...।

शगुणों के हरे रंगों से
चंगेरे भरने लगी
गोटे किनारियों की
अलग अलग किस्मों से
चंगेर लबालब भरपूर
हो गयी...।

रोज सोचती
कब वह दिन आएगा
कि चंगेर की एक एक
चीज निकाल कर
संवार कर
तेरी झोली में डालूंगी
माथे पर टीका
हाँथों में महावर
महावर पर छनकती चूडियाँ,
जड़ाऊं कंगन
जिन्हें मैने जौहरियों के
बडे बडे बाजारों में
घूम घूम कर चुना था...।

माँ कहती रहती
तेरी पसंद बड़ी अलग है
अनोखी है
कैसे कोई चीज
पसंद नहीं आती तुझे
कोई अदना चीज
भाती नहीं तुझे।

माँ मेरी आँखों के
सपने देखती बेटी को
डोली में बिठाने के...
द्वार पर शहनाई बजाने के...
बन्दनवार सजाने के
भर भर चंगेरों की खीलें उडाने के...।
तेरे दूल्हे की हर डगर को
फूलों से महकाने को...
तारों को तोड़
तेरी झोली में भर जाने के..।

सोचती हूँ कन कओसे
तेरे पैरों में पाजेब पहना दूं
तेरी रुनझुन
कानों को सुना दूं
टूटे मेरी साँस तब...
जब तुझे फूलों
में झुला दूं...
-----
परिचय---
वरिष्ट कवयित्री सुदर्शन प्रियदर्शनी ने पंजाब विश्व विद्यालय से पी-एच.दी की उपाधि प्राप्त की.

अमेरिका में भारतीय संस्कृति पर आधारित पत्रिका 'फ्रेगरेंस' की शुरुआत १६ वर्ष पहले की.

आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भारतीय व अमरीकी श्रोताओं के लिए अमेरिका के राज्य क्लेवलैंड में कार्यक्रम आयोजित करती हैं.

प्रकाशित रचनाएँ--
रेत की दीवार , सूरज नहीं उगेगा , अरी ओ कनिका , जलाक (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह) , शिखंडी युग , बरहा (कविता संग्रह)

पुरस्कार --
महादेवी पुरस्कार ,हिन्दी परिषद् ,टोरंटो (कनाडा ), महानता पुरस्कार (फेडरेशन आफ इण्डिया ) ओहायो,(यू एस ए), गवर्नर्स मीडिया पुरस्कार , ओहायो (यू एस ए)

भारत की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में स्वतत्र लेखन.

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12 टिप्पणियाँ

  1. कोमम संवेदनाओं से भरी हुई कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं चंगेर का अर्थ तो नहीं जानता पर कविता मुझे छूती है।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अच्छी काव्य प्रस्तुति. बधाई.

    - सुलभ सतरंगी

    जवाब देंहटाएं
  4. एक मां के सपनों से सजी सुन्दर कविता जिसमें वह अपनी बेटी के भविष्य को आंखों में भर कर बैठी है...

    यहां तक मेरी जानकारी है..."चंगेर" हिमाचली भाषा में बांस की खपचियों से बनीं टोकरी या बर्तन नुमा कोई वस्तु हो सकती है.. अधिक स्पष्टीकरण तो लेखिका ही दे पायेंगी.

    जवाब देंहटाएं
  5. मन को छू जाती कविता। बहुत अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  6. तेरी रुनझुन
    कानों को सुना दूं
    टूटे मेरी साँस तब...
    जब तुझे फूलों
    में झुला दूं...

    वाह बहुत खूंब

    जवाब देंहटाएं
  7. सुदर्शन जी की कविता 'चंगेर दर चंगेर' पढ़ी, मोहिन्दर जी ने सही कहा है -
    "चंगेर" हिमाचली भाषा में बांस की खपचियों से बनीं टोकरी होती है, कई
    प्रदेशों में इसके साथ जूट का भी प्रयोग किया जाता है. बहुत भावपूर्ण रचना है,
    सुदर्शन प्रियदर्शनी जी एवं साहित्य शिल्पी दोनों को बहुत -बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. kavita sundar lagi yadi kathin sabdon ka arth spast kar den to aur achhaa rahe jo ki andaj lagana padata hai

    जवाब देंहटाएं
  9. सोचती हूँ कन कओसे
    तेरे पैरों में पाजेब पहना दूं
    तेरी रुनझुन
    कानों को सुना दूं
    टूटे मेरी साँस तब...
    जब तुझे फूलों
    में झुला दूं...
    आपका साहित्य शिल्पी पर स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  10. sudarshan ji

    namaskar

    bahut hi sundar kavita .. maa ke aankho me basa beti ke liye manmohak sansaar ...

    Meri badhai sweekar karen..

    regards

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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