
[सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता से प्रेरित होकर...]
मैं तिनका हूँ
तुम्हारी देहरी का
पैरों तले रौंदा हुआ
तिनकना न मुझे देखकर
तुम्हारे जूतों की ठोकर से
बेचैन हो उड़ूँगा अंधड़ बन
तुम्हारे ही आकाश में
और जा गिरूँगा तुम्हारी
आँख में
किरकिरी बनाओगे आँख की अपनी
तो घनेरी पीड़ बन जाऊँगा
आँख की तुम्हारी
ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ पहुँच न सकूँ मैं
ऐसा कोई हुआ नहीं
जो रोक ले मुझे कहीं जाने से...
आखिर मैं एक तिनका हूँ !
जा मिलूँगा
अन्य तिनकों से तब,
ढूँढ नहीं पाओगे तुम मुझे
तिनकों की ढ़ेर में और
तुम्हें तिनके के बल का
अहसास भी करा दूँगा।
* * * * *
17 टिप्पणियाँ
सुशील भाई की रचना बहुत उम्दा है, पसंद आई. आभार इस प्रस्तुति का!!
जवाब देंहटाएंमैं ऐसी कविता बहुत पसंद करता हूँ।- दुमका वाले अशोक सिंह।
जवाब देंहटाएंअशोक सिंह जी से जानकारी मिली कि सुशील जी की नयी कविता लगी। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंयह कविता शोषण तन्त्र पर आगाज करती है। कविता की संवेदना मुझे उद्यीप्त भी करती है।
जवाब देंहटाएंतिनका जिसे कहा है
जवाब देंहटाएंवो तन का महाबली है
उसके आगे नहीं किसी
पराक्रमी की भी चली।
भाई सुशील जी, ब्चपन में एक मुहावरा पढ़ा था- तिनके का सहारा। तिनके की शक्ति सचमुच महान है। तिनके के माधयम से आपने अपनी कविता में बहुत कुछ कह दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुशीलजी,
जवाब देंहटाएंये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं,
जा मिलूँगा
अन्य तिनकों से तब,
ढूँढ नहीं पाओगे तुम मुझे
तिनकों की ढ़ेर में और
तुम्हें तिनके के बल का
अहसास भी करा दूँगा।
आदरणीय सुशील जी की कविता में जो बात बेहद प्रभावित करती है वह है साफगोई। आपके बिम्बों की चीरफाड करने की आवश्यकता नही होती बल्कि एक सामान्य समझ को भी झकझोरने में आपकी कविता का कोई जवाब नहीं है।
जवाब देंहटाएंजा मिलूँगा
अन्य तिनकों से तब,
ढूँढ नहीं पाओगे तुम मुझे
तिनकों की ढ़ेर में और
तुम्हें तिनके के बल का
अहसास भी करा दूँगा।
ऐसी कोई जगह नहीं
जवाब देंहटाएंजहाँ पहुँच न सकूँ मैं
ऐसा कोई हुआ नहीं
जो रोक ले मुझे कहीं जाने से...
आखिर मैं एक तिनका हूँ !
....कई बार छोटी-छोटी बातें / चीजें भी बड़ा सन्देश दे जाती हैं. लाजवाब कविता !!
KAVITA KEE LAJAWAAB EK-EK PANKTI
जवाब देंहटाएंKE LIYE SUSHIL KUMAR JEE KO BADHAEE.ARSE KE BAAD EK UMDA KAVITA
PADHEE HAI.
सुशील जी आपकी रचना में वाकई दम होता है मजा आ गया पढकर बधाई हो
जवाब देंहटाएंतिनके ने कबीर से लेकर सुशील तक अनेक कवियों को कलम उठाने पर विवश किया है. आपने तिनके की ताकत के दर्शन कराये...साधुवाद.
जवाब देंहटाएंkavita khoob hai
जवाब देंहटाएंbahut khoob hai
ise baanchnaa nihaal kar gaya......
_____badhaai !
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंtinke ke bare me auski mahima ko kya khoob likha hai
जवाब देंहटाएंbadshai
saader
rachana
जिस की कुछ हस्ती नहीं होती वह बडी से बडी हस्ती से टकरा सकता है.. सुन्दर भाव भरी रचना.
जवाब देंहटाएंजर्रा होते हुये परवाज की हसरत कोई बुरी बात भी नहीं.. एक शेर याद आ गया यह रचना पढ कर..
जर्रा ए खाक हूं परवाज की हसरत है मगर
आंधियो तेज चलो और उडा लो मुझको..
Dalit sahitya ke pannon me darj kar di aap ne ek aur bahut shandar rachana...
जवाब देंहटाएंDil ko chhoo gayi..
"तिनकना न मुझे देखकर
तुम्हारे जूतों की ठोकर से
बेचैन हो उड़ूँगा अंधड़ बन
तुम्हारे ही आकाश में
और जा गिरूँगा तुम्हारी
आँख में..."
kafi anand aaya.
"जा मिलूँगा
अन्य तिनकों से तब,
ढूँढ नहीं पाओगे तुम मुझे
तिनकों की ढ़ेर में और
तुम्हें तिनके के बल का
अहसास भी करा दूँगा।"
aapki rachana me savan ki dhar foot pari hai.
koti-koti dhanyavaad.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.